नीचे संस्कृत में प्रयुक्त कुछ न्याय (लोकरूढ़ नीति वाक्यांश) दिये हुए हैं।
अरुन्धतीदर्शनन्याय - ज्ञात से अज्ञात की ओर जाना
शाखाचंद्रन्याय -
काकतलीयन्याय -
अजाकृषाणीन्याय -
अन्धचटकन्याय - अन्धे के हाथ बटेर लगना
अन्धगजन्याय - अन्धा और हाथी
अन्धगालांलन्याय - अन्धा और गाय की पूँछ
अन्धपंगुन्याय - अन्धा और लंगडा
अन्धदर्पणन्याय - अन्धा और दर्पण
नष्टाश्वदग्धरथन्यास - नष्ट अश्व और जला हुआ रथ
अन्धपरम्परान्याय - अन्ध परम्परा
अरण्यरोदनन्याय - वन में रोना
स्थूणानिखनन्याय - खूँटे को हिलाकर पक्का करना
अर्धकुक्कुटीन्याय - आधी मुर्गी खाने के लिये, आधी अण्डे देने के लिये
अशोकवनिकान्याय - अशोक वाटिका न्याय (सीता को अशोक वाटिका में ही क्यों रखा?)
अश्मलोष्टन्याय - पत्थर से ईंट (ढेला) नरम होता है। यह न्याय यह दर्शाने के लिये उपयुक्त होता है कि शेर को भी कभी 'सवा शेर' मिल जाता है। रूई की अपेक्षा ढेला बहुत कठोर है किन्तु पत्थर उससे भी अधिक कठोर होता है।
दृषदिष्टिकान्याय -
कण्ठचामीकरन्याय - गले में जेवर का न्याय
कदम्बकोरक (कदम्बगोलक) न्याय - कदम्ब की कली का न्याय ; यह न्याय तब उपयुक्त होता है जब उदय के साथ ही विकास आरम्भ हो जाय। ज्ञातब्य है कि कदम्ब का कली/फूल से फल बनने की प्रक्रिया एकसाथ ही होती है।
कफोणीगुडन्याय - कोहनी पर लगे गुड का न्याय (चाट भी नहीं सकते)
कम्बलनिर्णेजनन्याय - कंबल धोने का न्याय (काम कुछ, परिणाम कुछ और)
काकदन्तपरीक्षान्याय (काकदन्तगवेषणन्याय) - कौवे के दांत गिनना (ब्यर्थ का काम करना)
काकाक्षिगोलकन्याय - कौवे के आंख के गोलक का न्याय (दो भिन्न अर्थ सूचित करने वाले शब्द या शब्द-समूह)
कूपखानकन्याय - कुआँ खोदने वाले का न्याय (अंगों पर मिट्टी लगी हो तो भी कुएं से पानी निकलने पर धो सकते है)
कूपमण्डूकन्याय - कुएं का मेढक (जिसकी सोच सीमित और संकुचित हो)
कूपयन्त्रघटिकान्याय - रहट की बाल्टी (घटिका) का न्याय
खलेकपोतन्याय - खलिहान पर कबूतर (एक साथ धावा बोलते हैं)
गुडजिव्हिकान्याय - गुड और जीभ (मीठा लेप की हुई औषधि)
घट्टकुटीप्रभातन्याय - चुंगी नाके की प्रभात
घुणाक्षरन्याय - दीमक और अक्षर का न्याय (दीमक के काटने से अक्षर बनना)
चोरापराधेमाण्डव्यदण्डन्याय - चोर करे अपराध और संन्यासी को फांसी
तमोदीपन्याय - अंधेरे को देखने के लिये दीया (दीप)
देहलीदीपन्याय - दहलीज पर रखा हुआ दीया
तुष्यतुदुर्जनन्याय - दुर्जनों का तुष्टीकरण
तृणजलौकान्याय - घास और जोंक का न्याय
दण्डापूपन्याय - लकडी पर लगी मिठाई (लकडी के साथ ही गई)
क्षीरनीरन्याय x तिलतण्डुलन्याय (हंसक्षीरन्याय) - दूध का दूध, पानी का पानी
विषकृमिन्याय - विष के कृमि (विष में ही जिंदा रहते हैं)
स्वामिभृत्यन्याय - मालिक और नौकर (संबंध)
वीचितरंन्याय - लहरों से लहर पैदा होती है।
वृध्दकुमारीवाक्य (वर) न्याय - वृद्ध कुमारी का वाक्य (प्रस्ताव)
सूचीकटाहन्याय - सूई और कडाही
नृपनापितन्याय - राजा और नाई
पिष्टपेषणन्याय - आटे को पीसना (से क्या लाभ?)
प्रधानमल्लनिर्बहणन्याय - मुख्य योद्धा (मल्ल) का हार जाना
मण्डूकप्लुतिन्याय - मेंढक की छलांग
वटेयक्षन्याय - बरगद का भूत (सुनी-सुनाई बात)
समुद्रतरंग्न्याय - समुद्र और तरंग (एक ही चीज के रूप)
स्थालीपुलाकन्याय - पके भात की परीक्षा के लिये एक दाने की परीक्षा ही काफी है।
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