पाणिनि - व्याकरण के अध्ययन की विधि
व्याकरण - शास्त्र को अच्छी तरह अल्पकाल मे समझने के लिए वैज्ञानिक विधि यह है कि सज्ञाओं, प्रत्याहारो तथा अन्य पूर्वोलिखित साधनो का सम्यक् ज्ञान कर ले । प्रथमतः सज्ञां प्रभृति का साधारण ज्ञान और इसके इसके पश्चात् किस तरह प्रत्यय जुडते हैं और किस प्रकार एक सूत्र से दूसरे सूत्र मे अनुवृत्ति की जाती है, इसे समझने का प्रयत्न करना चाहिए। प्रत्यय लगने की विधि नीचे दी जाती है ।
( १ ) प्रत्यय मे पहले यह देखना चाहिए कि कितना प्रश जुडने के उपयोग में आने वाला है , जैसे ण्यत् प्रत्यय में चुटू सूत्र से आदि में आने वाला ण् तथा हलन्त्यम् सूत्र से त् लुप्त हो जाते हैं । केवल य भर बच रहता है ।
( २ ) पुन: यह देखना चाहिए कि इस प्रत्यय को पहले जुडना है या पीछे या बीच मे । इस सम्बन्ध में एक ही नियम है प्रत्यय ( ३ । १ । १ ) परश्च ( ३ । १ । २ ) अर्थात् प्रत्यय सदा बाद में ही जुडते है ( केवल तद्धित का एक प्रत्यय बहुच ऐसा है जो ईषदसमाप्ति अर्थ मे शब्द के पहले जुडता है , जैसे बहुतृण आदि ) ।
( ३ ) फिर यह देखना चाहिए कि जिसमे प्रत्यय को जुडना है , उसमे अनुबन्धो के कारण किस विकार का होना आवश्यक है , जैसे अचो ण्णिति ( ७ । २ । ११५ ) अर्थात् जित् , तथा णित् प्रत्यय बाद में रहने पर पूर्व मे आने वाले अजन्त अङ्ग के स्वर की वृद्धि हो जाती है । इस सूत्र के अनुसार ' हृ ' के आगे ‘ ण्यत् ' आने पर ' हृ ' के ऋ में वृद्धि होकर ' पार् ' हो जाता है ।
( ४ ) और अन्त मे, अर्थ समझने के लिए किस हेतु से प्रत्यय लगा है इसे समझना चाहिए । कृदन्त तथा तद्धित प्रकरणो मे इसका विशेष विवेचन किया जायगा। इन सब बातो को ध्यान में रखते हुए यदि कोई अध्ययन करे तो अल्पकाल में ही साधारण कोटि का व्युत्पन्न हो सकता है।
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